Sunday, April 4, 2010

पर्दा मेरा हक है - Anjum Sheikh

मैं एक साधारण सी गृहणी हूँ. हिंदुस्तान से बाहर रहती हूँ और आजकल अपने प्यारे वतन आई हुई हूँ. कोई लेखक नहीं हूँ, मगर फिरदौस जी के लेख ने मुझे मजबूर किया यहाँ लिखने के लिए.

वह कहती हैं कि परदे पर बैन महिलाओं की जीत है और मैं कहती हूँ की यह मेरा हक है?

आखिर कैसे कोई सरकार मेरे हक को छीन सकती है? यह मसअला तो मेरे और मेरे खुदा की बीच का है. यह तो एक इंसान का अपने रब के लिए प्यार है, आखिर इसका अंदाज़ा कोई सरकार कैसे लगा सकती है????

मैं अपने खुदा के आदेशों को मानु अथवा नहीं, इसके बीच में सरकार कहाँ से आ गई?

अगर कोई सरकार किसी महिला पर ज़बरदस्ती पर्दा करने के खिलाफ कानून बनती तो यकीनन मैं उस फैसले का समर्थन करती. और फिरदौस जी के समर्थन पर खुश होती. परन्तु यहाँ तो किसी देश की सरकार के द्वारा हम औरतों के हक का हनन किया जा रहा है, और एक औरत (फिरदौस जी) बड़े फख्र के साथ उसका समर्थन कर रही हैं. अगर ऐसा कोई कानून मेरे देश में होता अथवा वहां जहाँ मैं रहती हूँ तो एक महिला होने के नाते मैं इसके खिलाफ आखिरी साँस तक क़ानूनी लड़ाई लडती. परन्तु मुझे रंज हुआ कि यहाँ एक महिला ही महिलाओं के हक के खिलाफ बन रहे कानून का पक्ष ले रही है.

यहाँ जो बुरखे का ज़िक्र सभी लोग कर रहे हैं, इस्लाम में उसका कोई महत्त्व नहीं है. असल लफ्ज़ 'हिजाब' है और हिजाब का मतलब अलग-अलग परिस्तिथियों के हिसाब से अलग-अलग होता है. औरतों के लिए महरम के सामने का हिजाब अपने बदन को ढकना है, वहीँ ग़ैर-महरम रिश्तेदारों के सामने हिजाब का मतलब मुंह और हाथ के पंजे छोड़ कर पुरे बदन को ढंकना है.

अल्लाह ने कुरआन में मर्दों और औरतों को अपनी आंख्ने नीची करने, और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने का हुक्म दिया है. वहीँ औरतों को ऐसे कपडे पेहेन्ने का हुक्म दिया है, जिसे उनका बदन अच्छी तरह से ढका रहे. अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है -

[सुर: 24, अन-नूर, 30] इमान वाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपनी शर्म गाहों की हिफाज़त करें. यही उनके लिए ज्यादा अच्छी बात है. अल्लाह को उसकी पूरी खबर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं.

[31] और ईमान वाली औरतों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें. और अपने श्रृंगार ज़ाहिर न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है (अर्थात महरम) और अपने सीनों पर दुपट्टे डाले रहे और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करे सिवाह अपने शौहर के या अपने पिता के या अपने शौहर के पिता के या अपने बेटों के अपने पति के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भानजो के या अपने मेल-जोल की औरतों के या जो उनकी अपनी मिलकियत में हो उनके, या उन गुलाम पुरुषों के जो उस हालात को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चो के जो औरतों के परदे की बातों को ना जानते हों. और औरतों अपने पांव ज़मीन पर मरकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए. ऐ ईमान वालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हे सफलता प्राप्त हो.

मैंने उनके लेख पर भी कमेंट्स लिखा था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया. पता नहीं क्यों? क्योंकि वहां मैंने प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल.) के खिलाफ बहुत ही गंदे कमेंट्स देखे हैं, जिन्हें फिरदौस जी ने कुबूल कर लिया और मेरे सवालों को क़ुबूल नहीं किया. आखिर क्यों? मैंने उनको जानती नहीं हूँ, पर उनके इस फैसले से मुझे शक होता है, क्या वह मुसलमान है? और मुसलमान छोडो, क्या वह एक इन्साफ पसंद महिला हैं???

28 comments:

  1. Bahut hi achha likha hai Anjum ji. Lagta nahi ki pehli bar likha hai.

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  2. blogvani.com ke page par niche ki side par likha hai "ब्लागवाणी की सदस्यता लें" us par click kar ke sadasy baniye iske baad "ब्लागवाणी का लोगो अपने ब्लाग पर लगायें" aur "ब्लागवाणी पसंद का बटन अपने ब्लाग पर लगायें" par click karke instruction ko follow kariye.

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  3. Thanks Liaqat ji, maine dono jagah register kar liya hai.

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  4. mera blog Chhitthajagar.in par do dikhai de raha hai, par blogvani par nahi.

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  5. nice, kya realy first time likha hai?

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  6. Parda karna ya na karna swayam mahila ke upar hi chhodna chahiye. kisi ki zabardasti theek nahi hai. Mai aapse sehmat hu.

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  7. अंजुम जी, अपने पहला ही लेख बहुत अच्छा लिखा है. परेशान मत होइए, थोडा इंतज़ार करिए आपका ब्लॉग ब्लोग्वानी पर भी अवश्य ही आएगा.

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  8. आपने वाकई सही मुद्दा उठाया है. मेरी भी यही राय है, कि पर्दा करना या ना करना किसी भी औरत का निजी मामला है. और इस पर कोई भी सरकार ज़बरदस्ती नहीं कर सकती है. आखिर ऐसा बेवकूफी भरा कानून कैसे बन सकता है? और कैसे अकल्मन्द किसी भी औरत (जो कि पर्दा करना चाहती है) का हक कैसे छीन सकती है? और कैसे अपने आप को अक्लमंद कहने वाले लोग ऐसे कानूनों का समर्थन कर सकते हैं?

    आपके सवाल बेहद वाजिब हैं.

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  9. अगर आप इजाज़त दें, तो मैं आपकी तरफ से आपका यह लेख "हमारी अंजुमन" नामक संगठन पर पब्लिश करने की गुज़ारिश कर सकता हूँ. क्योंकि एकदम नई होने की वजह से आपको सदस्यता मिलने में समय लग सकता है.

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  10. बहुत शानदार लिखा है अंजुम जी आपने. और इसी चीज़ की ज़रुरत थी. क्योंकि मर्द लाख दलीलें देगा औरतों के मसले में लेकिन कुछ औरतें उसको बदगुमानी के साथ ही देखेंगी. लेकिन आपकी बातें शायद उनपर असर कर जाएँ.

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  11. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया शाहनवाज़ भाई, अगर मेरी लेख हमारी अंजुम में पब्लिश हो जाएगा तो बेहतर है. क्या आप इसमें मेरी मदद करेंगे?

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  12. ठीक है अंजुम जी, मैं कोशिश करता हूँ की आपकी आवाज़ को मंच दे सकूँ.

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  13. अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

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  14. अंजुम साहेबा ,अस्सलाम अलैकुम ,
    मैं आप की बातों से सहमत हूं ,अगर ये लेख ब्लॉग्वाणी पर नहीं आया तो हो सकता है कुछ समय लग जाए ,
    लेकिन लोग आप के ब्लॉग पर ज़रूर आएंगे.

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  15. अजुम जी आपने लिखा बहुत अच्छा है, आपने पर्दा करना और न करने में अपनी सो को लिखा है, आपने ये लिखा है कि पर्दा करना या न करना विचारों पर निर्भर करता है,लेकिन पर्दा करना थोपना भी अपनी जगह गलत नहीं है क्या

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  16. बहिन अंजुम आपने पर्दे को अच्छे अंदाज में पेश किया।
    आपने अपनी बात मजबूत तरीके से रखी। बड़ी हैरत होती है कि लोग बुर्के को जाहिलियत का निशान बताते हैं और सौंदर्यपन की नंगी प्रतियोगिता को तालियां पीटकर बढ़ावा देते हैं। वाह रे आधुनिक इंसान की अजीब सोच। बहिन अंजुम का बार फिर से शुक्रिया।

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  17. आंकड़ खुद बताते हैं कि वे औरतें शोषण की शिकार ज्यादा होती है जो ज्यादा खुली रहती है। पाश्चात्य देशों की महिलाएं आज शोषण की ज्यादा शिकार है। आखिर खुलेपन में ही महिला की हिफाजत होती तो फिर ये शोषित क्यों होती? सच्चाई यह है कि महिला को आधुनिकता का जामा पहनाकर उसका जमकर शोषण किया जा रहा है। उसके नंगेपन को कला और और आधुनिकता का नाम दिया जा रहा है।

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  18. सच लिखा है आपने
    किसी देश की सरकार के द्वारा हम औरतों के हक का हनन किया जा रहा है, और एक औरत (फिरदौस जी) बड़े फख्र के साथ उसका समर्थन कर रही हैं. अगर ऐसा कोई कानून मेरे देश में होता अथवा वहां जहाँ मैं रहती हूँ तो एक महिला होने के नाते मैं इसके खिलाफ आखिरी साँस तक क़ानूनी लड़ाई लडती. परन्तु मुझे रंज हुआ कि यहाँ एक महिला ही महिलाओं के हक के खिलाफ बन रहे कानून का पक्ष ले रही है.

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  19. पर्दे ने ही तो हमेशा से औरतो को गुलाम बनाने की साजिश रची है. इसमें हिन्दू मुस्लिम से कोई सरोकार नहीं है. पर्दे से बाहर आने का मतलब नंगा हो जाना नहीं है.

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  20. पर्दा तब करो जब धूल आंधी चले।

    पर्दा तब करो जब सर्द हवा के झोंके चलें।

    पर्दा तब करो जब किसी की बुरी नज़र से बचना भर हो।

    पर्दा तब करो जब लज्जा शरीर में संभाले न संभले।

    पर्दा तब करो जब कुकर्म किया हो कोई।

    पर्दा तब करो जब संक्रामक रोग लग गया हो कोई।

    पर्दा तब कतई मत करो जब फोटो खिंचवानी हो भई।

    पर्दा तब कतई मत करो जब पहचानने आया हो कोई।

    पर्दा तब कतई मत करो जब आप ही से बात होती हो।

    पर्दा तब कतई मत करो जब लोगों की आँखों पर पर्दा पड़ा हो.

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  21. videsh me rahti hai koi fark nahi padta soch ke mamle me abhi aap firdoz se pichhdi hai sayad aap ko aurto ki halat ke baare me nahi pata ya fir aap uski abhyast hai
    masla hindu ya muslim ka nahi hai
    masla swtantrta aur samnta ka hai
    saadar
    praveen pathik

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  22. अंजुमन, अपने मौलवी लोगो के फतवे पढ़ा करो, उन्होंने तो voter id card के लिए भी फोटो खिचवाने का विरोध किया है, कहते हैं कि चेहरा बहार के किसी व्यक्ति को नहीं दिखा सकते|इस पर कोर्ट में केस भी चल रहा है, जहाँ पर कोर्ट कि टिप्पड़ी थी कि वोट देना भी जरूरी नहीं है अगर आप ऐसे ही सोचते हैं|
    साथ ही आप कृपया यह बताये कि दिन पर दिन बढ़ते आतंकवादी हमलो से बचने के लिए आपका क्या सुझाव है, यदि कोई आदमी ही बुर्का पहन कर बम लेकर आया तो कैसे जानेगे|
    यहाँ पर नागरिकों कि सुरक्षा के लिए कोई भी सरकार नियम बना सकती हैं और बना रही हैं| अगर आपको बुर्का पहनने का इतना ही शौक है तो घर के अन्दर पहन कर बैठिये|

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  23. anjum baaji aadaab aapne islaami tor triqe se bger naaraz hue kttrpnthi ger islaamik triqe pr jo tippni ki he maashaallah qabile taarif he likhti rho insha allah ek din kttrpnthi maansikta se zrur aazaadi milegi. akhtar khan akela kkota rajasthan

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  24. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  25. BURKHA HAYA , SHARM KA PARDA HAI, YEH SIRF MUSALMAAN AURATO K ALIYE NAHI K WOHI SIRF PARDA KAREN.KISI BHI JAATI MAHILA KO DEKH LEN KISI BHI GHAIR MARD PE NAZAR PADTE HI WOH APNA AANCHAL SAMBHAL LETI HAI,APNE SHAREER KO UN HISSON KO DHAKNE KI KOSHISH KARTI HAIN JINSE UNHEN LAGTA HAI K WOH BE PARDA HAIN, AAP RAAJISTHAN JAYEN WAHAN DEKHEN K KISI TARAH WAHAN KI AURATE APNE PALLO SE APNE MUNH AUR HAATH KO DHUK KAR RAKHTI HAIN, WAHAN TO UNPE KOI ANGULI NAHI UTHATA.MUSALMAN AURATON K LIYE PARDE KA JO LIBAAS HAI WOH EK JAISA HAI, JO HAR MUSALMAN AURATE HAIN CHAHE WOH INDIAN MUSLIM AUARATE HON YA GHAIR MUMALIK ,JISE BURKHA KA NAAM DIYA GAYA HAI, TO AAKHIR IS BURKHE PAR ITNA SAWAL KYON UTH TA HAI.HAAN YEH BURHA UN MUSLIM AURATON K LIYE HAI JISNE DIL SE ISE APNA YA HAI, JINHE YEH LAGTA HAI IS BURKHE SE WO BE PARDAGI NAHI MAHSOOS KARTIN, BAHUT SAARI MUSLIM AURATE HAIN JO BURKHA NA PAHANKAR SHAWL YA SCARF PAHANTI HAIN, AUR WOH USME KHUD KO MAHFOOZ SAMAJHTI HAIN , TO AAJ K DAUR ME BURKHE KO LEKAR KOI PAABANDI BHI NAHI HAI.
    MAINTO YAHI KAHOONGA KI.... JISM KA NAHI, AANKHON KA PARDA HONA CHAHIYE...!!!AUR AGAR MUSLIM AGAR ISKO APNA HAQ BATATI HAIN TO HARJ HI KYA HAI?
    ARIF AKHTAR KAKVI,
    KAKO,JEHANABAD,BIHAR,INDIA

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  26. अंजुम शेख साहिबा आपने बेहतरीन तरीके से हिजाब के बारे में समझाया , यह कुछ गंगा जमुना संस्कृति के हिमायती, जाती शोहरत के लिए अल्लाह को भी इलज़ाम लगा देते हैं, अगर यह सच्चे होते तोह आपकी पोस्ट वहां पे दिख रही होती. यही मेरे साथ बी हुआ. वोह गलियों वाली पोस्ट तोह स्वीकार कर सकते हैं लेकिन कुरान की सही हिदी वाले कमेंट्स से दर लगता है उनको.हक का सामना नहीं कर सकते. लेकिन कब तक. एक दिन तोह मुह दिखाना है उसी अल्लाह को

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  27. रविन्द्र नाथ जी
    जाहिल कौम के ठेकेदारों के फतवे के खिलाफ अगर गैर मुस्लिम बोलता है,और इस्लाम के कानून को गलत कहता है तो यह उसका दोष नहीं क्यूंकि कुरान और हदीस में क्या है वोह नहीं जनता. वोह तो कुछ जाहिल और कट्टरवादी मुसलमानों की हरकतों को इस्लाम समझ बैठा है। आज इस बात की अधिक ज़रुरत है की सच्चा मुसलमान कौन है यह कुरान और मोहम्मद (स.अ.व) और उनके घराने की सीरत से पहचाना जाए और उसे दूसरी कौम के लोगों तक भी पहुँचाया जाए ,जिस से लोगों के दिलूँ में आपस में मुहब्बत और भाईचारा पैदा हो और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली इस्लाम विरोधी साजिश ,जिसका मकसद मुसलमानों के लिए लोगों के दिलों में नफरत पैदा करना है ,बेनकाब हो जाए और इंसानियत की विजय हो।

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